नई दिल्ली। मोदी सरकार-दो मंत्रिमंडल के पहले बड़े फेरबदल में रविशंकर प्रसाद, रमेश पोखरियाल निशंक, हर्षवर्धन और प्रकाश जावडेकर समेत 12 मंत्री मंत्रिमंडल से बाहर हो गए। निशंक और हर्षवर्धन जैसे मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाने के पीछे उनके खराब प्रदर्शन को अहम कारण बताया जा रहा है। लेकिन रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावडेकर के इस्तीफे इस पैमाने पर खरे नहीं उतरते हैं। ये दोनों न सिर्फ 2014 से मंत्री थे, बल्कि कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी बखूबी संभाल भी रहे थे। माना जा रहा है कि इन दोनों को संगठन के लिए सरकार से मुक्त किया गया है।
हर्षवर्धन की स्थिति मोदी सरकार एक से ही डांवाडोल रही है। पेशे से डाक्टर और पोलियो उन्मूलन अभियान की रूपरेखा तैयार करने में उनके योगदान को देखते हुए 2014 में उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन दो साल में ही उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय से हटाकर अर्थ साइंस मंत्रालय में भेज दिया गया और स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी जेपी नड्डा को सौंपी गई।
2019 में उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ-साथ विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय की भी जिम्मेदारी सौंपी गई। कोरोना जैसे वैश्विक संकट के दौर में इन दोनों मंत्रालय की अहम भूमिका थी। लेकिन हर्षवर्धन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका तराशने में विफल रहे। इसकी जगह नीति आयोग के सदस्य डाक्टर वीके पाल और भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार डाक्टर विजय राघवन ने आगे बढ़कर कमान संभाल ली। प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गई अपनी प्रदर्शन रिपोर्ट में उनके पास बताने के लिए कुछ खास नहीं था। इसीलिए इस बार उन्हें मंत्रिमंडल से पूरी तरह से बाहर कर दिया गया।
शिक्षा मंत्री के रूप में कई प्रयोगों के बाद जब रमेश पोखरियाल निशंक को लाया गया, तो उम्मीद की गई कि वे देश की शिक्षा प्रणाली भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप लागू करने में सफल होंगे। कई पुस्तकों के लेखक और भारतीय संस्कृति के जानकार के रूप में उनसे ऐसी अपेक्षा अनुचित भी नहीं थी। लेकिन नई शिक्षा नीति के अंतिम रूप देने के अलावा उनके पास बताने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है।
कोरोना के कारण देश की पूरी शिक्षा प्रणाली अस्त-व्यस्त रही। शिक्षा के क्षेत्र में कोई नवाचार लाकर उसे नई दिशा देने की जगह निशंक उससे निपटने के लिए संघर्ष करते दिखे। शिक्षा मंत्रालय की सभी संस्थाओं पर उनकी पकड़ इतनी कमजोर दिखी कि उन विभागों द्वारा वित्त प्रदत्त पत्रिकाओं में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ जहर उगला जाता रहा और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी। मामला जानकारी में आने के बाद भी वे तत्काल कार्रवाई करने में विफल रहे। शिक्षा मंत्रालय के हालात को लेकर प्रधानमंत्री की नाराजगी को इस बात से समझा जा सकता है कि वहां निशंक के साथ-साथ उनके राज्यमंत्री संजय धोत्रे को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
इसी तरह रसायन और उर्वरक मंत्री के रूप में सदानंद गौड़ा कोरोना काल में जरूरी दवाओं और उनके लिए जरूरी बल्क ड्रग की सप्लाई सुनिश्चित करने में विफल रहे। इसकी जिम्मेदारी सचिवों की उच्च स्तरीय समिति को निभानी पड़ी। यही स्थिति श्रम मंत्रालय में संतोष गंगवार की भी रही। कोरोना काल में श्रमिकों के बड़े पैमाने पर पलायन और उनकी दुश्वारियों को दूर करने के लिए एक पोर्टल बनाने की घोषणा की गई, लेकिन अभी तक यह बनकर तैयार नहीं हो पाया। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट सरकार की फटकार भी लगा चुकी है।
इस्तीफा देने वाले एक अन्य मंत्री थावरचंद गहलोत को सम्मानजनक विदाई दी गई और उन्हें पहले ही कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया। इसके अलावा 2019 में जीत के बाद अपनी सादगी के लिए चर्चा में आने के बाद प्रधानमंत्री ने प्रताप चंद्र षड्ंगी को राज्यमंत्री बनाकर उनपर भरोसा भी जताया, लेकिन बीते दो सालों में उनका योगदान शून्य रहा। यही हाल राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो, रतनलाल कटारिया और देवाश्री चौधरी का भी रहा। इन सभी को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया।