आज हम भीमराव अंबेडकर के विषय में चर्चा कर रहे हैं। अंबेडकर एक बहुत बड़े बुद्धिजीवी तथा सत्ता लोलुप व्यक्ति थे। इन्हें न कोई सवर्णों से भेद था न आदिवासी अवर्णों से प्रेम। पहले इन्होंने मुसलमान बनने की इच्छा व्यक्त की थी जिसे गांधी ने रोक दिया था। बाद में इन्होंने सत्ता के लिए आदिवासी हरिजन महिला एकीकरण का नाटक किया जो अंत समय तक जारी रहा।
अंबेडकर मैं जीवन भर बुद्धिजीवियों का साथ दिया और श्रमजीवियों के साथ हमेशा छल करते रहें। स्पष्ट है कि उस समय से लेकर आज तक राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था में श्रमजीवियों की भूमिका शुन्यवत होती है और बुद्धिजीवी श्रम शोषण के नए-नए तरीके खोजता है। स्वतंत्रता के पूर्व भारत में जो जातिय आरक्षण था वह सवर्ण बुद्धिजीवियों के पक्ष में था। लेकिन श्रम शोषण का सिद्धांत आज भी भारत के कुछ संपूर्ण राजनैतिक, आर्थिक, संवैधानिक व्यवस्था पर बुद्धिजीवियों तथा पूंजीपतियों का ही एकाधिकार है।
अंबेडकर ने जिस सामाजिक आरक्षण की व्यवस्था की है वह भी अप्रत्यक्ष रूप से श्रम शोषण का सिद्धांत है। गरीब, ग्रामीण, श्रमजीवी, कृषि उत्पादक टैक्स दें और सरकारी कर्मचारियों को बड़े-बड़े वेतन दिया जाए यह व्यवस्था पूरी तरह घातक है। श्रम का सम्मान बढ़ाना चाहिए, श्रम की मांग भी बढ़नी चाहिए श्रम का मूल्य भी बढ़ना चाहिए। यह एक मात्र न्याय संगत समाधान है।
श्रमजीवियों से टैक्स वसूल करके वह धन शिक्षा पर खर्च करना बुद्धिजीवियों का षड्यंत्र है। जिस सामाजिक पाप में अंबेडकर की भूमिका सबसे अधिक है। अंबेडकर ने श्रम के साथ इतना बड़ा धोखा करके बुद्धिजीवियों के पक्ष में कानून बनाए, पक्षपातपूर्ण है। अंबेडकर ने परिवार व्यवस्था और गांव व्यवस्था को संविधान से बाहर करके जाति संप्रदाय को संविधान में प्रमुख मान्यता दी, इसके लिए भीमराव अंबेडकर की निंदा करनी चाहिए।
आज भी भारत का हर बुद्धिजीवी अंबेडकर को भगवान के सरीखे मानता है क्योंकि अंबेडकर में बुद्धिजीवियों को श्रम शोषण का संवैधानिक तथा कानूनी अधिकार दे दिया है। गरीब, ग्रामीण, श्रमजीवी पर से लगने वाले सभी टैक्स समाप्त कर दिए जाए और श्रम का मूल्य बढ़ने दिया जाए। उसे रोककर ना रखा जाए। तब किसी प्रकार की जातियां आरक्षण को कोई महत्त्व नहीं रह जाएगा। मेरा सुझाव है कि अंबेडकर की कुटिल नीतियों का समाज में पर्दाफाश होना चाहिए। मैं इस प्रमाण को यहीं समाप्त करके कल लोक स्वराज्य पर कुछ लिखूंगा। परसों से हम अपने रूटीन चर्चा में आ जाएंगे।
( लेखक के स्वतंत्र विचार हैं )