लखनऊ । उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह का शनिवार को लखनऊ के संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआई) में निधन हो गया। वो बीते चार जुलाई से अस्पताल में भर्ती थे। डॉक्टरों ने बताया कि सेप्सिस और मल्टी ऑर्गन फेल्योर के कारण उनका निधन हुआ है। वह 89 वर्ष के थे।
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का अंतिम संस्कार 23 अगस्त को शाम नरौरा में गंगा नदी के तट पर किया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कल्याण सिंह के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए प्रदेश में तीन दिन के राजकीय शोक और 23 अगस्त को सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है।
दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राजस्थान के राज्यपाल रह चुके कल्याण सिंह की सियासत की डगर पर रफ्तार बहुत तेज रही न बहुत धीमी।
वह 35 साल की उम्र में पहली बार विधायक बने। मौका मिला तो अपने क्षेत्र के अलावा प्रदेश की राजनीति में भी सक्रिय नज़र आने लगे। अतरौली में कल्याण ने ऐसा झंडा गाड़ा कि 1967 में पहला चुनाव जीतने के बाद 1980 तक उन्हें कोई चुनौती ही नहीं दे सका। लेकिन 1980 के चुनाव में जनता पार्टी टूट गई तो कल्याण सिह को हार का सामना करना पड़ा।
दरअसल, कल्याण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जनसंघ में आए थे। जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ और 1977 में उत्तर प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हे रामनरेश यादव की सरकार में उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। 1980 में कल्याण पहली बार चुनाव हारे लेकिन उसी साल 6 अप्रैल 1980 को भाजपा का गठन हुआ तो कल्याण सिंह को पार्टी का प्रदेश महामंत्री बना दिया गया। उन्हें प्रदेश पार्टी की कमान भी सौंप दी गई।
इसी बीच अयोध्या आंदोलन की शुरुआत हो गई जिसमें उन्होंने गिरफ्तारी देने के साथ ही कार्यकर्ताओ में नया जोश भरने का काम किया। इस आंदोलन के दौरान ही उनकी इमेज रामभक्त की बन गई। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के खिलाफ बिगुल फूंक दिया।
राम मंदिर आंदोलन की वजह से उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में भाजपा का उभार हुआ और जून 1991 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। इसमें कल्याण सिंह की अहम भूमिका रही इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। इस तरह विधायक बनने के ठीक 24 वें साल 59 साल की उम्र में कल्याण सिंह यूपी के सीएम बन गए। हालांकि उनकी सरकार के दौरान ही बाबरी ढांचा विध्वंस हो गया तो इसका सारा दोष अपने ऊपर लेते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद कल्याण सिंह बड़े हिंदुत्ववादी नेता बन गए। मुख्यमंत्री रहते कारसेवकों पर गोली चलाने से इनकार करने वाले कल्याण सिंह को इस मामले में अदालत ने एक दिन की प्रतीकात्मक सजा भी दी थी। कल्याण सिंह की अगुवाई में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अनेक आयाम छुए। 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह अलीगढ़ के अतरौली और एटा की कासगंज सीट से विधायक निर्वाचित हुये। इन चुनावों में भाजपा कल्याण सिंह के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। लेकिन सपा-बसपा ने मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार बनाई और उत्तर प्रदेश विधानसभा में कल्याण सिंह विपक्ष के नेता बने।