
अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक का निधन भारतीय पत्रकारिता जगत के लिए अपूर्णनीय क्षति है। भारतीय पत्रकारिता के पुरोधा और भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए समर्पित डॉ. वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष किया। उन्होंने महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया की परंपरा को आगे बढ़ाया।
पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, प्रभावशाली वक्तव्य, संगठन.कौशल आदि अनेक क्षेत्रों में उन्होंने समर्पित होकर काम किया। अद्वितीय व्यक्त्तिव के धनी डॉ. वैदिक सदा प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। वे रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार रहे। उन्होंने अपनी पीएचडी शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मास्को के इंस्तीतूते नरोदोव आजी, लंदन के स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड एफ्रीकन स्टडीज़ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया।
उन्होंने जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की। वे भारत के ऐसे पहले विद्धान रहे, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध.ग्रंथ हिन्दी में लिखा। इस पर उनका निष्कासन हुआ और यह मसला राष्ट्रीय मुद्दा बना। उन के निष्कासन पर 1965.67 में संसद हिल गई।
सर्वश्री डॉ. राममनोहर लोहिया, मधु लिमये, आचार्य कृपालानी, इंदिरा गांधी, गुरु गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर, हिरेन मुखर्जी, हेम बरूआ, भागवत झा आजाद, प्रकाशवीर शास्त्री, किशन पटनायक, डॉ. जाकिर हुसैन, रामधारी सिंह दिनकर, डॉ. धर्मवीर भारती, डॉ. हरिवंशराय बच्चन, प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद आदि दिग्गजों ने वैदिक जी का डटकर समर्थन किया। इन सभी के समर्थन से वैदिक जी ने विजय प्राप्त की और नया इतिहास रचा। इस तरह उनके प्रयास से पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के दरवाजे खुले।
वैदिक जी ने अपनी पहली जेल.यात्रा सिर्फ 13 वर्ष की आयु में की थी। हिंदी सत्याग्रही के तौर पर वे 1957 में पटियाला जेल में रहे। बाद में छात्र नेता और भाषाई आंदोलनकारी के तौर पर कई जेल यात्राएं की और देश के कई बड़े जन.आंदोलनों के सूत्रधार रहे। वे कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार रहे। लगभग 80 देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं की।
1999 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसी वर्ष विस्कोन्सिन यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित दक्षिण एशियाई विश्व.सम्मेलन का उद्घाटन किया। उनके पिछले 60 वर्षों में हजारों लेख छपे और उन्होंने असंख्यभाषण दिए। वैदिक जी 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा ;हिन्दी समाचार समितिद्ध के संस्थापक.संपादक और इससे पूर्व नवभारत टाइम्स के संपादक ;विचारक रहे हैं। दिल्ली के राष्ट्रीय समाचार पत्रों, विभिन्न प्रदेशों और विदेशों के लगभग 200 समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर डॉ. वैदिक के लेख हर सप्ताह प्रकाशित होते रहे। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं।
डॉ. वैदिक को समय समय पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कई पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित किया गया। इनमें प्रमुख रूप से विश्व हिन्दी सम्मान 2003 महात्मा गांधी सम्मान 2008, दिनकर शिखर सम्मान, पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण.पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार, हिन्दी अकादमी सम्मान, लोहिया सम्मान, काबुल विश्वविद्यालय पुरस्कार, मीडिया इंडिया सम्मान, लाला लाजपतराय सम्मान आदि हैं। वे अनेक न्यासों, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय रहे। वे भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष रहे।
वैसे तो वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक कई बार विभिन्न कार्यक्रमों में गाजियाबाद आए, लेकिन अक्तूबर 1991 में गाजियाबाद वर्किंग जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन, गाजियाबाद जर्नलिस्ट क्लब और गाजियाबाद पत्रकार मंच के संयुक्त कार्यक्रम ओज के राष्ट्रीय कवि स्व. कृष्ण मित्र के अभिनंदन समारोह में वे मुख्य अतिथि थे।
–आर के चक्रवर्ती
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं