
सहारनपुर। दिल्ली की सामाजिक संस्था मानुषी सदन द्वारा सौ वर्ष पुरानी पुस्तक बहीश्ती जेवर के हवाले से राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में शिकायत दर्ज कराए जाने तथा इसमें दारुल उलूम देवबंद पर गंभीर आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की गई है। इसको लेकर उलमा दारुल उलूम के समर्थन में खड़े हुए हैं।
उलमा ने कहा कि आरोप लगाने वाले लोगों को अपनी जानकारी दुरुस्त कर लेनी चाहिए। क्योंकि जिस पुस्तक का हवाला दिया जा रहा है वो दारुल उलूम के पाठ्यक्रम में शामिल ही नहीं है। यह केवल महिलाओं और युवतियों के मसले मसाइल वाली पुस्तक है। जमीयत दावतुल मुसलीमीन के संरक्षक व प्रसिद्ध आलिम-ए-दीन मौलाना कारी इस्हाक गोरा ने कहा कि बहीश्ती जेवर पुस्तक में महिलाओं के बारे में बताया गया है।
जिस तरह के इल्जाम लगाए गए हैं वो कहीं से भी सिद्ध नहीं होते। दारुल उलूम को निशाना बनाना साजिश का हिस्सा है। इत्तेहाद उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि पुस्तक बहीश्ती जेवर दारुल उलूम के पाठ्यक्रम में शामिल ही नहीं है और न ही दारुल उलूम इसका प्रकाशन कराता है। पुस्तक में इस तरह की कोई बात नहीं है जैसा कि मानुषी सदन की और से आरोप लगाया है।
उन्होंने कहा कि यहां ये बताना जरुरी है कि मजहब-ए-इस्लाम नाबालिग के साथ शादी में यहां तक हुक्म देता है कि अगर किसी वजह से नाबालिग की शादी कर दी गई तो बालिग होने के बाद लड़की को यह इख्तियार (हक) है कि चाहे तो वह उस शादी को अपनी रजामंदी के साथ में रखे या उसको खत्म कर दे।
नाबालिग के साथ शादी करने को मजहब-ए-इस्लाम नहीं कहता। मुफ्ती असद कासमी ने कहा कि कुछ संस्थाएं ऐसी हैं जो दारुल उलूम और इस्लाम को लेकर गलत टिप्पणी कर उनको बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं के जिम्मेदारों को मशविरा है कि वह दारुल उलूम आए और इसके सिलेबस को देखें कि यहां क्या पढ़ाया जाता है। साथ ही वह इस्लामी तालीम, इस्लामी लॉ और शरीयत का बारीकी से अध्ययन करें।