नई दिल्ली। मानसून सत्र (Parliament Monsoon Session) की शुरुआत 19 जुलाई से हुई थी. सरकार को उम्मीद थी कि इस बार के सत्र में अहम मुद्दों पर चर्चा के साथ-साथ कई बिल भी पास हो जाएंगे, लेकिन विपक्ष के हंगामे के चलते संसद का कामकाज लगभग ठप पड़ा है। अब तक दोनों सदनों में कुल मिलाकर सिर्फ 18 घंटे का कामकाज़ हुआ है, जबकि इस दौरान संसद की कार्यवाही करीब 107 घंटे चल सकती थी। लिहाज़ा एक अनुमान के मुताबिक देश के खज़ाने को 133 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
लोकसभा में मौजूदा सत्र के दौरान सिर्फ 7 घंटे का कामकाज हुआ है, जबकि यहां 19 जुलाई से लेकर अब तक करीब 54 घंटे तक का काम हो सकता था। उधर ऊपरी सदन यानी राज्यसभा में भी अब तक महज 11 घंटे का काम हुआ है, जबकि यहां भी करीब 53 घंटे की कार्यवाही हो सकती थी. यानी हिसाब लगाया जाय तो दोनों सदनों में कुल मिलाकर अब तक कुल 89 घंटे की बर्बादी हुई है ।
PM नए मंत्रियों का नहीं करा सके परिचय
मानसून सत्र के पहले दिन विपक्ष के हंगामे के बीच प्रधानमंत्री को संसद में अपने नए मंत्रियों का परिचय तक नहीं कराने दिया गया. सदन की कार्यवाही स्थगित होने तक हंगामा चलता रहा. हंगामे के बीच पीएम मोदी ने कहा था, ‘मैंने सोचा था कि संसद में उत्साह होगा क्योंकि इतनी महिलाएं, दलित, आदिवासी मंत्री बनाए गए हैं. इस बार हमारे कृषि और ग्रामीण पृष्ठभूमि के साथियों, ओबीसी समुदाय को मंत्री परिषद में जगह दी गई है.’ लेकिन विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री के अभिभाषण को बाधित करने वाले नारे लगाए और बाद में सदन के पटल पर आ गए.
मोदी ने विपक्ष से की थी सहयोग की अपील
संसद सत्र से पहले पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों और राजनीतिक दलों से संसद के मानसून सत्र में सरकार से सबसे तीखे और कठिन सवाल पूछने का आग्रह किया था. उन्होंने कहा था कि सरकार को भी जवाब देने की अनुमति दी जानी चाहिए. मोदी ने कहा था, ‘मैं सभी सांसदों और राजनीतिक दलों से सबसे तीखे और कठिन सवाल पूछने का आग्रह करता हूं, लेकिन उन्हें सरकार को सौहार्दपूर्ण माहौल में जवाब देने की अनुमति देनी चाहिए क्योंकि लोगों को सच्चाई बताकर लोकतंत्र को मजबूत किया जाता है.’