हमारी जॉब में सैलरी स्लिप यानी वेतन पर्ची एक महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट है। जॉब चेंज करते हुए नई कंपनी का एचआर डिपार्टमेंट सबसे ज्यादा जोर इसी पर देता है। किसी भी कर्मचारी के लिए यह आय का कानूनी प्रमाण है। जानते हैं इससे जुड़ी जरूरी बातें…
बदलते समय में नौकरी में सैलरी स्लिप का महत्व और बढ़ गया है। जॉब में सैलरी स्लिप यानी वेतन पर्ची एक महत्वपूर्ण डॉक्यूमेंट है। जॉब चेंज करते हुए नई कंपनी का एचआर डिपार्टमेंट सबसे ज्यादा जोर इसी पर देता है। कर्मचारी के लिए यह आय का कानूनी प्रमाण है। साथ ही रोजगार के प्रूफ के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है।
यह आयकर रिटर्न दाखिल करने और बैंक से लोन लेने के लिए भी अहम दस्तावेज है। नई नौकरी के लिए आवेदन करते समय वेतन वृद्धि के लिए बातचीत करने में भी मदद करती है। इसमें इनहेंड सैलरी तथा उसमें हुई कटौती के बारे में लिखा होता है।
पर्ची में मूल वेतन के अतिरिक्त और क्या लाभ प्राप्त होते हैं अथवा कौन से टैक्स देय होते है, इनके बारे में जानकारी दी जाती है। इसलिए पे-स्लिप को समझने से टैक्स बचाने में मदद मिल सकती है।
(1) बेसिक सैलरी सैलरी स्लिप में बेसिक सैलरी का जिक्र सबसे पहले किया जाता है और यह आपकी सैलरी का सबसे बड़ा हिस्सा है। विभिन्न भत्तों की गणना के लिए इसका इस्तेमाल होता है। PF और HRA की गणना इसके आधार पर होती है। आपको बेसिक सैलरी पर ही टैक्स देना होता है।
(2) हाउस रेंट अलाउंस (HRA) HRA बेसिक सैलरी का 50% तक हो सकता है। आप किराए पर रहते हुए वर्ष में जितना किराया देते हैं, उसमें से बेसिक सैलरी का 10% हिस्सा घटाने के बाद जो पैसा बचता है, वह भी HRA हो सकता है। और कंपनी इन दोनों में वह हिस्सा जमा करती है जो कम होता है। आप जिस घर के किराए का भुगतान करते हैं, उसके लिए आयकर कानूनों के तहत पूर्ण या आंशिक कर का दावा कर सकते हैं।
(3) LTA (लीव ट्रैवल भत्ता) LTA कर-मुक्त होता है, जो कर्मचारियों को यात्रा के खर्च में सहाय देता है। आप इसे अपने बच्चों, पति या पत्नी और माता पिता के साथ एक यात्रा के लिए उपयोग कर सकते हैं। आपको साल में कम से कम एक बार हॉलिडे ट्रिप लेकर कर-छूट का दावा कर सकते है। आपको अपने नियोक्ता के पास अपनी यात्रा के बारे में बिल जमा करने की आवश्यकता है।
(4) प्रोफेशनल टैक्स (PT) आपकी सैलरी के आधार पर यह टैक्स कटता है। विभिन्न राज्यों में यह अलग-अलग होता है। PT के तहत साल में अधिकतम 2,500 रुपये काटने का नियम है। प्रोफेशनल टैक्स राज्य कर है जबकि आयकर केंद्र सरकार लगाया जाता है। नियोक्ता यह राशि काटकर राज्य सरकार को जमा करता है। आप इस कर का दावा कर सकते हैं।
(5) बोनस या टार्गेट वेरिएबल पे (TVP) कर्मचारी का प्रदर्शन कितना अच्छा है उस आधार पर मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक बोनस या टार्गेट वेरिएबल पे (TVP) चुकाया जाता है। यह नियोक्ता तय करता है कि आपको कितना बोनस मिलेगा। यह आमतौर पर आपके प्रदर्शन और कंपनी के मुनाफे पर निर्भर करता है। यह पूरी तरह से कर-योग्य है।
(6) कनवेयेंस अलाउंस या ट्रैवल अलाउंस (वाहन भत्ता/यात्रा भत्ता) कनवेयेंस अलाउंस कंपनी आपको तब देती है। जब आप कंपनी के काम से कहीं यात्रा करते हैं। इसमें मिलने वाला पैसे इनहैंड सैलरी में जुड़कर मिलता है। अगर आपको 1,600 रुपये तक कनवेयेंस अलाउंस मिलता है तो इस पर आपको टैक्स नहीं देना पड़ेगा।
(7) मेडिकल अलाउंस यह अलाउंस आपको मेडिकल कवर के रूप में दिया जाता है। इस सुविधा का इस्तेमाल कर्मचारी जरूरत पड़ने पर कर सकते हैं। जैसे 21,000 रुपये तक की राशि पर ESIC के लिए कुछ पैसा कटता है। इसे कर्मचारी की स्वास्थ्य जरूरतों के लिए काटा जाता है। पहले यह कटौती 15,000 रुपये तक थी।
(8) स्पेशल अलाउंस यह एक तरह से रिवॉर्ड है, जो कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता है। हर कंपनी की परफॉर्मेंस पॉलिसी अलग-अलग होती है। यह पूरी तरह टैक्सेबल है।
(9) प्रॉविडेंट फंड (PF) अगर आपकी कंपनी के पास 20 से ज़्यादा कर्मचारी है तो उसे EPF अधिनियम-1952 के तहत सेवानिवृत्ति लाभ का पालन करना आवश्यक है। PF आपकी सैलरी का 12% होता है, जो आपके PF अकाउंट में जमा होता है।
नौकरी छोड़ने या फिर जरूरत पड़ने पर ब्याज समेत PF की राशि वापस मिल जाती है। पीएफ में जितनी राशि आपकी सैलरी से कटती है उतनी ही राशि कंपनी अपनी तरफ से आपके पीएफ अकाउंट में जमा करती है।