बिजनौर। शिवरात्रि का त्योहार इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग के बीच मनाया जाएगा। शुक्रवार को शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक का श्रेष्ठ समय शाम छह बजकर 29 मिनट से सात अगस्त को शाम सात बजकर 12 मिनट तक रहेगा। इस समय महादेव का जलाभिषेक करना शुभ रहेगा।
धार्मिक संस्थान विष्णुलोक के ज्योतिर्विद पंडित ललित शर्मा के अनुसार जैैसे ब्रह्मांड का कोई छोर व अंत नहीं है उसी तरह महादेव शिव भी अनादि हैं। भगवान शिव में परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। शिवजी के मस्तक पर एक ओर चंद्र है तो तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। शिव परिवार भी इससे अछूता नहीं हैं। उनके परिवार में भूत-प्रेत, नंदी, सिंह, सर्प, मयूर, मूषक सभी का समभाव देखने को मिलता है।
ललित शर्मा के अनुसार साल में 12 शिवरात्रि आती हैं, लेकिन सबसे अधिक महत्व फाल्गुन व सावन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि का रहता है। शिवरात्रि पर महाभिषेक का विशेष महत्व रहता है। बताया कि सावन माह की शिवरात्रि छह अगस्त को मनाई जाएगी। चतुर्थी छह अगस्त को सुबह छह बजकर 29 मिनट से शुरू होकर सात अगस्त को शाम सात बजकर 12 मिनट रहेगी। शिवरात्रि पर भगवान शिव के परिवार की पूजा का विधान है। इस दिन स्नान करके घर या मंदिर में शिव की आराधना करनी चाहिए।
शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी, इत्र, चंदन, भांग, बेलपत्र, धतूरा, रुद्राक्ष व सफेद फूल चढ़ाने चाहिए। मान्यता है कि जब समुद्रमंथन से निकले विष निकला था तो भगवान शिव ने उस विष को अपने गले में धारण कर लिया था। इससे उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगा तो देवताओं ने उन पर शीतल जल डालकर उस ताप को शांत किया था। तभी से भगवान शिव को सावन का माह और जल प्रिय हो गया। सर्वप्रथम भगवान शिव सावन के महीने में ही धरती पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे जहां उनका स्वागत अर्घ्य देकर किया गया था।