पुराणों के अनुसार श्राद्ध का महत्व, जानिए क्या है लाभ

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  • आचार्य विनीत कौशिक-

महर्षि सुमंतु ने श्राद्ध से होने वाले लाभ के बारे में बताया है कि ‘संसार में श्राद्ध से बढ़कर कोई दूसरा कल्याणप्रद मार्ग नहीं है। अतः बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।

श्राद्ध की आवश्यकता और लाभ पर अनेक ऋषि-महर्षियों के वचन ग्रंथों में मिलते हैं।

  • गरुड़ पुराण के अनुसार ‘पितृ पूजन (श्राद्ध कर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।
  • मर्कण्डेय पुराण के अनुसार ‘श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।
  • ब्रह्मपुराण के अनुसार ‘जो व्यक्ति शाक के द्वारा भी श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता।’

साथ ही ब्रह्मपुराण में वर्णन है कि ‘श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यावस्था में ही मर गए हों, वे सम्मार्जन के जल से तृप्त हो जाते हैं।

  • कुर्मपुराण में कहा गया है कि ‘जो प्राणी जिस किसी भी विधि से एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुनः संसार चक्र में नहीं आता
  • श्राद्ध का महत्व तो यहां तक है कि श्राद्ध में भोजन करने के बाद जो आचमन किया जाता है तथा पैर धोया जाता है, उसी से पितृगण संतुष्ट हो जाते हैं।

बंधु-बांधवों के साथ अन्न-जल से किए गए श्राद्ध की तो बात ही क्या है, केवल श्रद्धा-प्रेम से शाक के द्वारा किए गए श्राद्ध से ही पितर तृप्त होते
है

  • विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धायुक्त होकर श्राद्ध कर्म करने से पितृगण ही

श्राद्ध क्या है?

“श्रद्धया यत कृतं तात श्राद्धं | “

अर्थात श्रद्धा से किया जाने वाला कर्म श्राद्ध है |

अपने माता पिता एवं पूर्वजो की प्रसन्नता के लिए एवं उनके ऋण से मुक्ति की विधि है |

श्राद्ध क्यों करना चाहिए  ?

पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध किया जाना अति आवश्यक है|

श्राद्ध नहीं करने के कुपरिणाम ?

यदि मानव योनी में समर्थ होते हुए भी हम अपने जन्मदाता के लिए कुछ नहीं करते हैं या जिन पूर्वज के हम अंश (रक्त,जींस) है ,यदि उनका स्मरण या उनके निमित्त दान आदि नहीं करते हैं, तो उनकी आत्मा  को कष्ट होता है, वे रुष्ट होकर , अपने अंश्जो वंशजों को श्राप देते हैं | जो पीढ़ी दर पीढ़ी संतान में मंद बुद्धि से लेकर सभी प्रकार की प्रगति अवरुद्ध कर देते हैं | ज्योतिष में इस प्रकार के अनेक शाप योग हैं | 

कब ,क्यों श्राद्ध किया जाना आवश्यक होता है ?

यदि हम 96 अवसर पर श्राद्ध नहीं कर सकते हैं तो कम से कम मित्रों के लिए पिता माता की वार्षिक तिथि पर यह अश्वनी मास जिसे क्वांर का माह  भी कहा जाता है | पितृ पक्ष में अपने मित्रगण के मरण तिथि के दिन साथ अवश्य करना चाहिए|

वर्ष में  कितने अवसर श्राद्ध के होते हैं  ?

वर्ष में श्राद्ध के 96 अवसर होते हैं,

जैसे 12 अमावस्या,

चार युग तिथि,

14 – मनुवादी तिथि ,

12 – संक्रांति 

12 – वैधृति

12 – व्यतीपात

16 – महालय

12 – अन्वष्टका

05 – पांच पर्ववेध |

यदि उक्त 96 श्राद्ध के अवसरों का प्रयोग नहीं कर सके तो प्रति वर्ष भाद्र माह की पूर्णिमा से  अश्विनी कृष्ण पक्ष जो पितृ पक्ष अर्थात सोलह दिन कहलता है| जिसमे  में माता पिता / पूर्वज के लिए उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध कर्म अवश्य किया जाना चाहिए 

पितृ पक्ष /श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध राहु दोष का निवारक होता है ?

मत्स्य पुराण (14 अध्याय): गृहस्थों को देवपूजा से पूर्व पितर पूजा करना चाहिए।

पितर – पूर्वज मनुष्यो, देवो, ऋषियो के हैं

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