लखनऊ । प्रयागराज यूथ ऑइकन, मोटिवेशनल स्पीकर और योग गुरु आनंद गिरि ने बचपन यानी दस वर्ष की उम्र में ही घर छोड़ दिया था। प्रयागराज मैं 21 अगस्त 1984 को रक्षाबंधन के दिन जन्मे आनंद गिरि एक बहन और चार भाइयों में सबसे छोटे हैं लेकिन वह हमेशा अपनी जन्मभूमि प्रयागराज नहीं, भारत कहते रहे हैं। माता-पिता के संस्कारों ने उन्हें संस्कृत पढ़ने के प्रति आकृष्ट किया। वेद और ऋषि परंपरा जानने की इच्छा के कारण उन्होंने महज दस वर्ष की आयु में ही गुरुकुल में प्रवेश ले लिया था।
उन्होंने हिमालय की लंबी यात्राएं कीं। हरिद्वार से पदयात्रा करते हुए सात दिनों में केदारनाथ पहुंचे जहां एक संत के दर्शन हुए, जिनके पास वह छह वर्षों तक रहे। इस दौरान उन्होंने रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, त्रियुगीनारायण, वसुधारा आदि जगहों पर कुछ-कुछ दिन रहकर वहां के आध्यात्मिक अनुभव बटोरे। तभी उन्हें लगा कि संन्यासी बनकर यहीं पर बस जाएं। गुरु से दीक्षा लेने के बाद जब एक दिन उन्होंने गुरु से अपने माता-पिता, परिवार के बारे में प्रश्न किया तो गुरु ने कहा, संन्यासी बनने के बाद ‘माता च पार्वती देवी, पितो देवोमहेश्वरा’ यानी पार्वती ही तुम्हारी मां और भगवान शिवशंकर ही तुम्हारे पिता, जबकि ईश्वर के भक्त तुम्हारा परिवार है।
और तो और आनंद गिरि की हाईस्कूल की मार्कशीट में मां के नाम की जगह पार्वती और पिता की जगह गुरु का नाम लिखा हुआ है। दीक्षा लेने और संन्यासी बनने के बाद उन्होंने भी भगवा अपना लिया। संन्यासी के रूप में ही उन्होंने संस्कृत भाषा, आयुर्वेद, वेदों आदि के अतिरिक्त बीएचयू से स्नातक और योग तंत्र में पीएचडी की है। उन्होंने मंत्रयोग, हठयोग, राजयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग का भी प्रशिक्षण प्राप्त किया। नरेंद्र गिरि को वर्ष 2004 में मठ बाघंबरी गद्दी का महंत बनाए जाने वर्ष 2005 में आनंद गिरि भी मठ बाघंबरी गद्दी से जुड़े। इससे पहले वर्ष 2003 में उन्हें पहली बार अखाड़े का थानापति बनाकर अखाड़े के बड़ौदा स्थित मंदिर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
बतौर मोटिवेशनल स्पीकर आनंद गिरि ने आईआईटी, आईआईएम जैसी संस्थाओं में विद्यार्थियों को मेंटल और फिजिकल हेल्थ जबकि ब्रिटिश और कनाडा की पार्लियामेंट में भारतीय दर्शन पर पर संबोधित किया। एचडीएफसी, ओएनजीसी आदि संस्थानों के मैनेजमेंट गुरुओं के साथ भी उनका संवाद रहा। प्रयागराज और हरिद्वार के मेलों में उन्होंने अपने को बतौर प्रवचनकर्ता स्थापित किया।
इंग्लैंड के एश्क्रोफ्ट विश्वविद्यालय की ओर से डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी योग- अध्यात्म के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्य के लिए इंग्लैंड के एस्क्रोफ्ट विश्वविद्यालय की ओर से डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी गई। पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट की ओर से योगगुरु बाबा रामदेव ने वैश्विक स्तर पर योग सेवा के लिए ‘योग गौरव सम्मान’ दिया था। लंदन में वर्ष 2019 के कुंभ मेले का ‘लोगो’ लांच किया और कुंभ मेले का महत्व बताया।