4 वर्ष पूर्व 8 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक गंभीर आर्थिक कदम उठाते हुए नोटबंदी लागू कर दी थी। मेरा उस समय भी मानना था और आज भी मानना है कि नोटबंदी का वह आदेश पूरी तरह देशहित में था।
यद्यपि राजनैतिक लाभ के लिए विपक्ष ने उस आदेश का विरोध किया तथा कानूनी कमजोरियों का लाभ उठाकर बैंको और पूंजीपतियों की मिलीभगत के कारण उक्त आदेश का प्रभाव शून्य हो गया या हम यह भी कह सकते हैं कि विफल हो गया। यदि बैंकों ने साथ दिया होता तो पूंजीपति भी कुछ नहीं कर पाते और नोटबंदी का लाभ देश को बहुत अधिक होता।
नोटबंदी से भारत की आम जनता को बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा था। उन छोटे मझोले व्यापारियों को भी अत्यधिक नुकसान उठाना पड़ा था जो गैरकानूनी तरीके से व्यापार करते थे। मैंने उस समय भी सलाह दी थी और अब भी मेरी सलाह है कि इनकम टैक्स का दर जब तक नहीं घटेगा तब तक काला धन भी बनता रहेगा और हो सकता है कि विदेश भी जाता रहे।
नोटबंदी के आदेश को मजबूर होकर सरकार ने निष्प्रभावी किया है। अब भी आवश्यकता इस बात की है कि जिन कानूनी कमजोरियों के कारण नोटबंदी असफल हुई। उन कानूनों को पहले ठीक किया जाए साथ ही इनकम टैक्स की दर कम कर दिए जाए। इन सबके बाद यदि फिर से नोटबंदी होती है तो सफल होने की अधिक संभावना है। नोटबंदी का विरोध करके विपक्ष ने देश को एक आर्थिक सुधार से वंचित कर दिया। यह देश के लिए अच्छा नहीं हुआ फिर भी मोदी जी को यह अनुभव हुआ है कि अभी भारत में कड़े कदम उठाने के पहले अधिक कानूनी बदलाव करने आवश्यक है।
वैसे नोटबंदी के साथ-साथ एक सावधानी रखी जाती कि आम लोगों को सिर्फ तीन दिन का समय दिया जाता कि वह तीन दिन के अंदर अपना नोट किसी भी सरकारी एजेंसी के पास दिखा कर नोट नंबर लिखवाकर रसीद ले लें तो वो नोट कभी भी बदल सकते थे। इतनी बड़ी बड़ी पंक्तियो मे खड़े होने की जरूरत नहीं पड़ती। मेरे विचार से इस प्रक्रिया से नोटबंदी सफल हो सकती थी।