विघ्नहर्ता हैं गणपति, जानिए गणेश जी की व्रत कथा

Ganesha
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  • पं विनीत कौशिक

पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया।
इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।

भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।

तब गणेश ने कहा – ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।’ यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी ।

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि
पर्व के दिन प्रातकाल सुबह उठकर स्नान करने के पूर्व भगवान् गणेश की पूजा करने के हेतु उनकी मूर्ती उत्तर दिशा में एक चौकी में स्थापित करे। इसके बाद आसान ग्रहण करके गणेश भगवान् की पूजा करे। पूजा के पूर्व भगवान् गणेश को फूल, फल, रोली, पंचामृत, आदि अर्पण करे। जीप एवं धुप के साथ भगवान् गणेश की पूजा करे| भगवान् गणेश की मूर्ती या चित्र को मोदक या लड्डू का भोग लगाए। इसके बाद ऊं सिद्ध बुद्धि महागणपति नमः का जाप करे। शाम के समय व्रत पूजा करने के पूर्व आपको संकष्टी व्रत कथा का पाठ करना होगा। संकष्टी व्रत कथा का पाठ शुभ मूहर्त में करना शुभ माना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन यह मूहर्त 4 बजकर 53 मिनट से शुरु होकर चन्द्रमा के अर्घ्य देने के बाद आप व्रत समाप्त कर सकते है ।

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत पूजा विधि
गणेश चतुर्थी की पूजा के प्रारंभ में आपको हथेली में जल, अक्षत एवं पुष्प लेकर स्वास्तिक बनाकर गणेश भगवान् एवं अन्य देवताओ को स्मरण करना होगा।
इसके बाद पुष्प एवं अक्षत को चौकी पर समर्पित करना होगा।
उसके पश्चात एक सुपारी में मौली लपेटकर चौकी पर स्थापित करें।
इसके बाद गणेश भगवान् का आह्वाहन करे एवं कलस स्थापना करे।
स्मरण रहे की कलश उत्तर-पूर्व दिशा अथवा चौकी की बाईं ओर स्थापित किया जाए।
उसके पश्चात डीप प्रज्वलित करे।
उसके बाद पंचोपचार के अनुसार गणेश पूजन करें। जिसकी विधि इस प्रकार है।
सबसे पूर्व आह्वान प्रक्रिया सम्पन्न करे।
इसके बाद स्थान ग्रहण करे।
हथेली में जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए गणेश भगवान् के चरणों में अर्पित करे।
चन्द्रमा को मंत्र पढ़ते हुए 3 बार जल चढ़ाएं।
पान के पत्ते के द्वारा पानी लेकर छींटें मारें।
सिलेसिलाए वस्त्र, एवं कलावा चढ़ाएं. मालाएं, पगड़ी, जनेऊ, हार, आदि अर्पण करे।
फूल, धूप, दीप, पान के पत्ते पर फल, मिठाई, मेवे आदि अर्पित करे।

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत पूजा विधि
गणेश चतुर्थी की पूजा के प्रारंभ में आपको हथेली में जल, अक्षत एवं पुष्प लेकर स्वास्तिक बनाकर गणेश भगवान् एवं अन्य देवताओ को स्मरण करना होगा।
इसके बाद पुष्प एवं अक्षत को चौकी पर समर्पित करना होगा।
उसके पश्चात एक सुपारी में मौली लपेटकर चौकी पर स्थापित करें।
इसके बाद गणेश भगवान् का आह्वाहन करे एवं कलस स्थापना करे।
स्मरण रहे की कलश उत्तर-पूर्व दिशा अथवा चौकी की बाईं ओर स्थापित किया जाए।
उसके पश्चात डीप प्रज्वलित करे।
उसके बाद पंचोपचार के अनुसार गणेश पूजन करें। जिसकी विधि इस प्रकार है।
सबसे पूर्व आह्वान प्रक्रिया सम्पन्न करे।
इसके बाद स्थान ग्रहण करे।
हथेली में जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए गणेश भगवान् के चरणों में अर्पित करे।
चन्द्रमा को मंत्र पढ़ते हुए 3 बार जल चढ़ाएं।
पान के पत्ते के द्वारा पानी लेकर छींटें मारें।
सिलेसिलाए वस्त्र, एवं कलावा चढ़ाएं. मालाएं, पगड़ी, जनेऊ, हार, आदि अर्पण करे।
फूल, धूप, दीप, पान के पत्ते पर फल, मिठाई, मेवे आदि अर्पित करे।

इसलिए गणेश जी को प्रिय है दूर्वा

पौराणिक कथा के अनुसार अनलासुर नामक एक दैत्य था, जिसने सब जगह पर हाहाकार मचा रखा था । वो इंसानों, दैत्यों और ऋषि मुनियों को जिंदा ही निगल लेता था। उसके आतंक से सारे देवी-देवता भी बहुत परेशान हो गए थे. वो इतना ताकतवर था कि देवताओं की शक्ति भी उस दैत्य के सामने कम पड़ने लगी थी। तब सभी देवता अनलासुर से बचाने की प्रार्थना करने भगवान गणेश की शरण में गए. भगवान गणेश ने भी अनलासुर का अंत करने के लिए उसे जिंदा ही निगल लिया। अनलासुर को निगलने के भगवान गणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी। तब उस जलन को शांत करने के लिए उन्हें कश्यप ऋषि ने 21 दूर्वा एकत्र कर समूह बनाकर खाने के लिए दी। इसे खाने के बाद उनके पेट की जलन शांत हो गई। तब से गणपति को दूर्वा अत्यंत प्रिय हो गई और उनकी पूजा के दौरान 21 दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई ।

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