शुरू हुआ दुनिया का सबसे बड़ा मेला महाकुंभ, क्या है महाकुंभ का महात्म्य, जानिए

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प्रयागराज। कुंभ मेला शताब्दियों से अनवरत चली आ रही उस सांस्कृतिक यात्रा का पड़ाव है, जिसमें नदियां हैं, कथाएं हैं, मिथक हैं, अनुष्ठान हैं, संस्कार हैं, सरोकार हैं और शामिल हैं हमारी अनगिनत आध्यात्मिक और सामाजिक चेतनाएं। जिनके बलबूते हम अपनी परंपराओं को बखूबी निभाते हुए अपनी बनावट और मंजावट करते आए हैं। अथक प्रवाहमान इस यात्रा में नदियों की आवाजें भी शामिल हैं। जिन्हें सुनने स्वयं कुंभ आता है तो कुंभ में शामिल होने का स्वप्न संजोए लाखों करोड़ों लोग भी।

ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध के दौरान प्रथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश की कुछ बूंदे गिरी थी। जिनमें से पहली बूंद प्रयागराज में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी नासिक में गिरी थी। यही वजह है कि इन्हीं चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ का अर्थ है अमृत कलश।

देवदत्त पटनायक की किताब ‘The Man who was a Woman and Other Queer Tales from Hindu Lore Front Cover’ में कहा गया है कि इतिहास में कुंभ मेले की शुरुआत का प्राचीनतम वर्णन सातवीं सदी में सम्राट हर्षवर्धन के समय मिलता है। उस वक्त भारत आए चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के बारे में कहा जाता है कि वह प्रयाग के कुंभ में शामिल हुए थे। वहीं, आदि गुरु शंकराचार्य को बाकायदा इसकी शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है।

कुंभ की तिथि का निर्धारण कैसे होता है
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एक कारण यह भी है कि जब बृहस्पति ग्रह, वृषभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मकर राशि में आते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है। ऐसे ही जब गुरु बृहस्पति, कुंभ राशि में हों और उस दौरान सूर्य देव मेष राशि में गोचर करते हैं, तब कुंभ हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। इसके साथ ही जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में विराजमान हों, तो महाकुंभ नासिक में आयोजित किया जाता है। जब ग्रह बृहस्पति सिंह राशि में हों और सूर्य मेष राशि में हों, तो कुंभ का मेला उज्जैन में लगता है।

कुंभ के आयोजन में इन ग्रहों की भी काफी बड़ी भूमिका है। देवताओं के साथ खींचतान के दौरान चंद्रमा ने अमृत को बहने से बचाया, गुरु ने कलश को छुपाया था। वहीं, सूर्य देव ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के गुस्से से रक्षा की। इसीलिए, जब इन ग्रहों का योग संयोग एक राशि में होता है तब कुंभ मेले का आयोजन होता है। दुनिया की सबसे बड़ी सभा कुंभ मेले को यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में शामिल किया गया है।

अब बात कर लेते हैं 2025 के इस महाकुंभ के बारे में। यह महाकुंभ 144 साल बाद लग रहा है।
-इस बार कुंभ में करीब 40 करोड़ लोग शामिल होंगे।
-41 देशों की रिकॉर्ड आबादी जितने लोग मौजूद होंगे इस बार कुंभ में।
-1.25 लाख सुरक्षा जवान तैनात किए गए हैं इस महाकुंभ में।
-12 लाख कल्पवासी प्रयागराज के इस महाकुंभ में जप तप और स्नान करेंगे।
-इस बार शाही स्नान नहीं बल्कि अमृत स्नान किया जाएगा। – इस बार तीन दिन के तप के बाद 12 हजार नागा संन्यासी बनेंगे।

उत्थान ज्योतिष संस्थान के निदेशक डॉ. पं. दिवाकर त्रिपाठी पूर्वाचली के अनुसार, पौष पूर्णिमा 12 जनवरी को भोर में 4.32 बजे शुरू हो जाएगी, जो सोमवार को भोर में 3.41 बजे तक रहेगी। इसी दिन संगम में कल्पवास शुरू हो जाएगा। पौष पूर्णिमा पर स्नान.दान का शुभ मुहूर्त सोमवार को सूर्योदय से पूर्व 4.32 बजे के बाद से शुरू हो जाएगा, जो रात में 3.41 बजे तक रहेगा।
पूर्वाचली के अनुसार 13 जनवरी को चंद्रमा स्वगृहाभिलाषी स्थिति में रहेंगे। शुक्र एवं शनि कुंभ राशि में विद्यमान होंगे। जहां शनि देव अपनी राशि कुम्भ में विद्यमान होंगे तो वहीं शुक्र अपनी उच्चाभिलाषी स्थिति में विद्यमान होंगे इससे पुण्य फल बढ़ जाएगा। स्नान, दान, जप, तप अनुष्ठान करने से शुभ फलों में वृद्धि होगी।

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