आज है हिन्दुओं के जागने और स्वाभिमान जगाने का दिन

Hindus and awaken
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आज छह दिसंंबर है अर्थात वह दिन जब सदियों से विध्वंस और अत्याचार सहन करने वाली सभ्यता के अंदर से एक आक्रोश का गुबार फूटा था। 6 दिसम्बर 1992 को यह गुबार सिर्फ एक मंदिर के लिए नहीं था। अपितु उस सभ्यता के मानमर्दन का था, जिसने उत्तर पश्चिम में हिमालय की चोटियों पर इस देश की संतानों का इतना रक्तपात और अत्याचार देखा था कि उन चोटियों का नाम ही हिंदुकुश अर्थात हिंदुओं की कब्रगाह रख दिया।

यह गुबार सिर्फ विदेशी आक्रमणों का नही था क्योंकि भारत भूमि ने इसके पहले शक, हूण, कुषाण आदि आक्रांताओं का सफलतापूर्वक भी सामना किया था और कलांतर में उन्हें अपने आंचल में समाहित कर लिया था। यह गुबार उस मानसिकता का था जो मंदिरों और मूर्तियों को तोड़कर आनंद लेती थी। स्वयं को अलग और हिंदुओं को नीच मानती थी।

जो सोमनाथ के मंदिर को सिर्फ लुटती ही नहीं है, शिवलिंग के टुकड़े करके उन्हें गजनी की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर लगा देती है, जो ज्वालादेवी के मंदिर को गाय के रक्त और मांस से अपवित्र करके आनंद लेती हैं।

जो मानसिकता कश्मीर के शासक को इस बात के लिए प्रेरित करती है कि वह बुतशिकन की उपाधि धारण करें और ललितादित्य के द्वारा निर्मित सूर्यमन्दिर को जलाने के लिए महीनों आग जलाए।

यह गुबार उस मानसिकता के खिलाफ था जो महान विश्वविद्यालय नालन्दा को जलाकर अल्लाह का कार्य करने की ख़ुशी देती है।

यह गुबार दिल्ली क़ुव्वत उल इस्लाम मस्जिद और उन हजारों मंदिरों के खिलाफ था जो मध्यकाल से लेकर वर्तमान कश्मीर में तोड़े गए। जिसके चलते आज भी ज्ञान की ज्योति रही शारदा पीठ किसी विक्रमादित्य का इंतजार कर रही है।

यह गुबार सिर्फ मंदिरों का नही था यह गुबार उस अत्याचार का था जिसके चलते हजारों पवित्र वैदिक नारी शक्ति ने जौहर की आग का आलिंगन किया। हजारों पुरुषों ने अपने रक्त से इस धरा को सींच दिया।

दुनिया में शायद ही किसी जाति का इस तरह अत्याचार और नृशंस संहार हुआ है। यहूदी आज भी हिटलर के अत्याचारों को याद करने के लिए गैस चेम्बर और ट्रेन के डिब्बों, कपड़ो, जूतों के अवशेषों को सजोए हुए हैं ताकि भविष्य की पीढ़ी को याद दिलाते रहे और बताए कि ” ऐसे अत्याचारों का किस प्रकार प्रतिकार करना चाहिए , हमें क्या सीखना चाहिए।

एक बाबरी मस्जिद के जाने से सारे शांतिदूत आज भी शोक मानते हैं। जिस जाति ने इतने मन्दिर और रक्त बहाया है उसकी मनोदशा क्या होगी। इतने में तो एक जाति पागल और बर्बर हो सकती है लेकिन हिन्दू आज भी उतना ध्यान नही देते हैं।

क्या मक्का में यदि हिंदुओं ने जीतकर मन्दिर बनाया होता और आज मक्का आजाद लोकतंत्र होता तो क्या वहाँ की जनता उस मंदिर को रहने देती।

तुर्की एक हागिया सोफिया म्यूज़ियम को बर्दाश्त नही कर सका और उसे मस्जिद में तब्दील कर दिया जबकि वास्तव में वह रोमन साम्राज्य में बनी चर्च थी तो सारा ज्ञान हमें ही क्यों दिया जाता है।

स्पेन ने जब इस्लाम की गुलामी को त्यागा तो गुलामी के प्रतीकों को बदल दिया या खत्म कर दिया अथवा याद के तौर पर रख लिया।

हम भी याद के तौर पर बहुत कुछ रखेंगे ताकि बता सकें कि जिस भूमि पर वेदों की ऋचाओं का गान होता था, जहाँ ज्ञान की धारा बहती थी, जिसने सूरवीर महावीर योद्धा पैदा किए। उस संस्कृति के साथ इस्लाम ने कितना अत्याचार और नरसंहार किया। एक विकसित सभ्यता को उजाड़ और बियाबान बना दिया।

लेकिन अब ढकोसला नही चलेगा… कल तथाकथित गंगा जमुनी संस्कृति के समर्थक रुदन करेंगे। हिंदुओं को गालियां देंगे, लेकिन हमारे लिए निसन्देह यह गौरव का छण है। इसीलिए नही कि एक पुरानी इमारत को गिराया गया था बल्कि इसलिए क्योंकि पहली बार सैकड़ों वर्षों के बाद एक सभ्यता का गुबार फूटा था वह प्रतिकार के लिए तैयार हो गई थी।

आर के दक्ष
लेखक के अपने विचार हैं

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