
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि भारत का संविधान प्रत्येक बालिग को अपनी मर्जी से धर्म अपनाने व पसंद की शादी करने की आजादी देता है। इस पर कोई वैधानिक रोक नहीं है। मगर सिर्फ विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करना स्वीकार्य नहीं है।
जबरन धर्मातरण कराकर हिंदू लड़की से निकाह करने के आरोपी जावेद की जमानत अर्जी खारिज करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने दिया है।कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के लिली थॉमस और इलाहाबाद हाईकोर्ट के नूरजहां बेगम केस में प्रतिपादित विधि सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा, इस्लाम में विश्वास के बिना केवल शादी के लिए एक गैर मुस्लिम का धर्म परिवर्तन शून्य है।
कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति को अपने धर्म में सम्मान नहीं मिलता है, तो वह दूसरे धर्म की ओर झुकता है। धर्म केपीड़िता ने बयान में कहा कि उसे बीते साल 17 नवंबर को बाजार से कुछ लोगों ने जबरन गाड़ी में बैठा लिया उसे कुछ खिलाया गया जिससे बेहोश हो गई।
दूसरे दिन जब कुछ होश आया तो खुद को वकीलों की भीड़ में कड़कड़डूमा कोर्ट में पाया। वहीं, कागजों पर दस्तखत लिए गए।ठेकेदारों को अपने में सुधार लाना चाहिए, क्योंकि नागरिकों के धर्म बदलने से देश कमजोर होता है। विघटनकारी शक्तियों को इसका लाभ मिलता है। ब्यूरो धर्म में कट्टरता, भय व लालच का कोई स्थान नहीं है।