अब अदाणी का क्या होगा

adani
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दस साल पहले अमेरिकी कंपनी उबर के टैक्सी ड्राइवर ने दिल्ली में महिला यात्री के साथ जघन्य दुष्कर्म किया था। ड्राइवर को आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन आपराधिक जवाबदेही से बचने के लिए उबर ने अमेरिकी अदालत में पीड़ित महिला को करोड़ों रुपयों का मुआवजा देकर मामला सैटल कर लिया। भारत में कानून कछुए की द तरह रेंगता हैए जबकि अमेरिका में कानून की रफ्तार तेज है।

अदाणी संकट को भारत और अमेरिका के कानूनी ढांचे के संदर्भ में समझने की जरूरत है। भारत में उद्योगपति छिपकर नेताओं की मदद करते हैं, लेकिन अमेरिका में मस्क जैसे उद्योगपति खुलकर ट्रंप को आर्थिक सहयोग देने के साथ उनके लिए चुनाव प्रचार भी करते हैं। भारत में पद या प्रोजेक्ट हासिल करने के लिए कानूनी तौर पर पैसे नहीं दिए जा सकते। लेकिन अमेरिका में निजी कंपनियां लॉ बिंग कर सकती हैं। भारत में घूसखोरी गैर.कानूनी है, लेकिन उसे प्रशासनिक, सामाजिक और राजनीतिक मान्यता मिली है। जबकि अमेरिका में घूसखोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ 1977 में बनाए गए फॉरेन करप्ट प्रैक्टिस ऐक्ट ;एफसीपीए कानून में सख्त सजा और जुर्माने के प्रावधान हैं।

अगर अमेरिका से जुड़ी किसी भी कंपनी ने दूसरे देश में रिश्वत दी हो, तो आरोपियों के खिलाफ अमेरिका में मुकदमा चल सकता है। अदाणी मामले में रिश्वत भारत में देने के आरोप हैं, लेकिन अमेरिकी निवेशकों का अदाणी समूह की कंपनी में पैसा लगा है, इसलिए न्यूयॉर्क की संघीय अदालत में मुकदमा चल रहा है। सिक्योरिटी फ्रॉड और वॉयर फ्रॉड के अपराध में दोषी पाए जाने पर अदाणी और उनके सहयोगियों को 20 साल तक की सजा के साथ भारी जुर्माना देना पड़ सकता है।

इस मामले से जुड़े कुछ विदेशी साजिशकर्ताओं का नाम सार्वजनिक नहीं हुआ है। लगता है कि उन्होंने ही सरकारी गवाह बनकर एफबीआई, अभियोजन पक्ष, न्याय विभाग और प्रतिभूति और विनिमय आयोग को अनेक सबूत दिए हैं। फिर अमेरिकी अधिकारियों ने सर्च वारंट के आधार पर भतीजे सागर अदाणी के मोबाइल और डिजिटल उपकरणों को जब्त नों मैसेज, ब्राइब नोट्स और पीपीटी जिटल का डिजिटल सुबूत हासिल कर लिए।

इस मामले में और पीपीटी के अनेक डिजिय हैं। पहला.अमेरिकी निवेशकों और बैंकों से झूठ बोलकर पैसा इकट्ठा करने से एफसीपीए कानून का उल्लंघन। दूसरा.न्याय विभाग और एसईसी की साझा बैठक में झूठ बोलकर रिश्वत कांड में शामिल होने से इन्कार। तीसरा.सोलर एनर्जी के प्रोजेक्ट हासिल करने के लिए रिश्वत देने की योजना। चौथा.सबूतों से छेड़छाड़ करके उन्हें नष्ट करने का प्रयास ।

भारत में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने सौर ऊर्जा निगम की स्थापना की है और राज्यों में वितरण कंपनियां हैं। अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड कंपनी का 93 फीसदी कारोबार इन सरकारी कंपनियों के साथ होता है। अदाणी ग्रीन और विदेशी कंपनी एज्यूर पावर को 12 गीगावाट सौर ऊर्जा की आपूर्ति का ठेका मिल गया। लेकिन बिजली की कीमत ज्यादा होने से राज्यों में खरीदार नहीं मिल रहे थे।

अमेरिकी जांच अधिकारियों के अनुसार, ठेकों को हासिल करने के लिए अदाणी समूह ने भारत में अफसरों और नेताओं को लगभग 26.5 करोड़ डॉलर ;लगभग 2200 करोड़ रुपये, रिश्वत देने की योजना बनाई। पांच राज्यों.ओडिशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू.कश्मीर और तमिलनाडु के साथ सौर ऊर्जा बेचने का करार हुआ। कहा जा रहा है कि कुल रिश्वत का 70 फीसदी हिस्सा आंध्र प्रदेश की तत्कालीन जगन रेड्डी सरकार के अधिकारियों और नेताओं को मिला। लेकिन अमेरिकी अदालत में 50 पेज से ज्यादा के अभियोग पत्र में कब, कितनी और किसको रिश्वत दी गई, इसके प्रमाण नहीं दिख रहे। ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद दुनिया में व्यापारिक युद्ध छिड़ने की आशंका है।

अमेरिका की एक अन्य अदालत ने दिवालिया कंपनी बायजू के फाउंडर रवींद्र के खिलाफ ऋण के पैसे के दुरुपयोग के आरोप लगाए हैं। सरकारी बैंकों के पैसों से रिश्वतखोरी और निजी संपत्ति बनाना भ्रष्टाचार के साथ मनी लॉन्ड्रिंग के दायरे में आता है। केन्या सरकार ने अदाणी ग्रुप के साथ हुए सभी समझौतों को रद्द करने की घोषणा की है। बांग्लादेश की नई सरकार के साथ अदाणी समूह के रिश्ते तल्ख हैं। अमेरिकी अदालत के आदेश से हिंडनबर्ग मामले में अदाणी समूह के खिलाफ सेबी की जांच और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर भी सवाल उठ रहे हैं।

इसके पहले अदाणी समूह पर स्वच्छ ईंधन के रूप में लो.ग्रेड का कोयला बेचकर धोखाधड़ी करने के आरोप लगे थे। अब सौर.ऊर्जा से जुड़े इस प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार की खबरों से भारत में सरकारी तंत्र की सड़ांध उजागर हो रही है। अमेरिका में पिछले कई वर्षों से जांच चल रही है। छह महीने पहले अखबारों में इसकी खबर छपने पर अदाणी समूह ने ऐसी किसी भी जांच से इन्कार कर दिया था। रिश्वतखोरी के इस मामले में कनाडा के एक पेंशन फंड की भी भूमिका सामने आ रही है। सेबी को सख्त नियामक की भूमिका निभाते हुए निवेशकों के हितों की रक्षा करनी चाहिए।

नियामक अपनी भूमिका कानून के अनुसार निभाएं, तो भारत का उद्योग जगत ऐसे मामलों में अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी से बच सकता है। अमेरिकी अदालत से जुड़े मामलों में भारत की अदालत का क्षेत्राधिकार नहीं है। लेकिन विपक्ष इस मामले पर जेपीसी जांच की मांग कर रहा है। अदाणी यदि अमेरिका में आरोपों को स्वीकार कर लेते हैं या अदालत से उन्हें सजा हुई, तो भारत में सीबीआई, ईडी और सेबी को पूरे मामले की जांच करनी ही पड़ेगी।

इसके बावजूद इस मामले में अदाणी की गिरफ्तारी या प्रत्यर्पण जैसे कानूनी विवाद होने की उम्मीद कम है। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी कानून के अनुसार, ऐसे आपराधिक मामलों को सैटलमेंट से भी खत्म किया जा सकता है। वर्ष 2008 में सीमैन्स कंपनी ने व्यापारिक दस्तावेजों में हेराफेरी के मामले को 80 करोड़ डॉलर का जुर्माना देकर सैटल कर लिया था।

उसी तरीके से वर्ष 2014 में ऑल्सटम कंपनी ने 77 करोड़ डॉलर, वर्ष 2019 में एरिक्सन कंपनी ने 106 करोड़ डॉलर, वर्ष 2020 में गोल्डमैन सैश कंपनी ने 160 करोड़ डॉलर का जुर्माना भरकर आपराधिक मामलों से निजात पा ली थी। लेकिन ऐसे सैटलमेंट के लिए आरोपों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वीकारोक्ति जरूरी होती है। लेकिन अदाणी के लिए अमेरिका में ऐसा कानूनी विकल्प आसान नहीं है, क्योंकि ऐसी किसी भी स्वीकारोक्ति के बाद अदाणी को भारतीय अदालतों में भ्रष्टाचार और घूसखोरी के संगीन मुकदमों का सामना करना पड़ सकता है।

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