नई दिल्ली। मोदी सरकार ने एक अहम फैसला लिया है। जिसके तहत अब सरकारी कर्मचारी भी राष्ट्ीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम में हिस्सा ले सकेंगे। इस अहम फैसले के पीछे लोकसभा में हुई हार को कारण माना जा रहा था।
बता दें कि करीब 58 साल पहले आरएसएस पर यह प्रतिबंध लगाया गया था। इसके बाद से संघ को बहुत कुछ झेलना पड़ा था। यहां तक कि कुछ राजनीतिक दलों ने तो इसे आतंकवादी संगठन तक करार दे दिया था। इसके बावजूद संघ मजबूती से मैदान में डटा रहा। वह जनता के बीच रहकर कार्य करने वाला संगठन है । इसीलिए इसकी स्वीकार्यता जनता के बीच कुछ अधिक ही है।
2014 में जब पूर्ण बहुमत से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी थी तब भी माना जा रहा था कि इसके पीछे संघ का ही हाथ है। क्योंकि संघ की पहुंच घर घर में थी। 2019 में दुबारा प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार की वापसी के बाद संघ को अलग थलग करने की कोशिशें शुरू हो गई थीं। इसके बाद 2024 के चुनाव में संघ ने अपने हाथ खींच लिए थे। नतीजा यह हुआ पिछले दो चुनावों में प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज करने वाली भाजपा 2024 के चुनाव में बहुमत का आंकड़ा तक नहीं छू पाई थी।
हालांकि भाजपा की सरकार बन जरूर गई, लेकिन उसके हाथ में दो बैशाखियां आ गईं । जिससे उस पर हर समय दबाव की स्थिति रहने लगी। शायद यही वजह है कि भाजपा एक बार फिर संघ की शरण में पहुंच गई है। माना जा रहा है कि इसी लिए मोदी सरकार ने आएसएस पर 56 साल पहले लगा प्रतिबंध हटा दिया है। अब संघ के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारी भी भाग ले सकेंगे।