इस्लाम और भारत का विपक्ष सांप्रदायिकता के लिए बहुत अधिक उत्तरदायी : बजरंग मुनि

Bajrang Muni
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मैंने लिखा था जिसके अनुसार इस्लाम और भारत का विपक्ष सांप्रदायिकता के लिए बहुत अधिक उत्तरदाई माना गया। लेकिन इस विषय पर मैं बाद में कभी चर्चा करूंगा। भारत में अपराधियों के मन में कानून का भय समाप्त होता जा रहा है। लोग खुलकर अपराध भी कर रहे हैं और गैर कानूनी कार्य भी कर रहे हैं। एक हमारा तंत्र है जो गैर-कानूनी कार्यों को रोकने में अधिक सक्रिय है और अपराध नियंत्रण में कम। यह हमारी चिंता का मुख्य विषय है।

यह कितने आश्चर्य की बात है कि हमारे तंत्र के दो महत्वपूर्ण विभाग न्यायपालिका और विधायिका आज तक अपराध और गैरकानूनी का अंतर भी नहीं समझते हैं। मेरे बताने के बाद भी तंत्र के यह दोनों विभाग इस विषय पर कोई चर्चा नहीं करते। परिणाम यह हो रहा है कि अपराध बढ़ते जा रहे हैं और पूरा समाज भ्रम में पड़कर गैरकानूनी कार्यों को रोकने में सक्रिय हैं।

मैंने एक सैद्धांतिक पक्ष लिखा है कि किसी भी इकाई में कानूनों की मात्रा जितनी अधिक होती है, उस इकाई के अंतर्गत कार्य कर रहे लोगों की समझदारी उतनी ही अधिक घटती चली जाती है। आज भारत में दुनिया की नकल करते हुए शिक्षा का तो बहुत विस्तार किया जा रहा है लेकिन ज्ञान घटता जा रहा है। या तो लोगों में शराफत बढ़ रही है जिसका अंतिम परिणाम होता है मूर्खता अथवा चालाकी बढ़ रही है जिसका परिणाम होता है ठगी और धूर्तता। समाज में समझदारी घटती जा रही है।

आखिर इसका दोषी कौन?
मेरे विचार से इसका दोषी पूरा का पूरा तंत्र है। न्यायपालिका और विधायिका दोनों ही इसके लिए समान रूप से उत्तरदाई हैं। क्योंकि यह दोनों ही दिन-प्रतिदिन कानून पर कानून तो बनाते जा रहे हैं, लेकिन स्वयं अपराध और गैरकानूनी कार्यो में अंतर नहीं कर पाते और ना समझ पाते हैं। तंत्र का काम अपराध नियंत्रण है और उसके लिए पर्याप्त कठोर कानून बनना चाहिए। तंत्र द्वारा अनावश्यक कानून बना-बना कर समाज को गुलाम बनाने की प्रक्रिया गलत है।

वर्तमान समाज में जिस तरह नासमझी बढ़ रही है उसका दोषी कोई व्यक्ति नहीं, समाज नहीं, सिर्फ और सिर्फ तंत्र है। इसलिए दुनिया से, विशेषकर भारत के तंत्र से जुड़े लोगों से तथा तंत्र के बाहर के विद्वानों से भी विनम्र निवेदन है कि वह अपराध और गैरकानूनी का फर्क समझेंगे और अपराध नियंत्रण को प्राथमिकता देंगे।

वर्तमान में अगर ठीक से समीक्षा की जाए तो साफ दिखता है कि अपराधों के रोकथाम के लिए बनाए गए कानून बहुत कमजोर है और अनावश्यक कानूनों की मात्रा बहुत अधिक है और ऐसे कानून बहुत कठोर भी है। देशभर के विद्वानों से मेरा निवेदन है कि हम आप सब बैठकर इस विषय पर गंभीर विचार मंथन करें। वर्तमान दुनियां की सभी समस्याओं के समाधान के लिए समझदारी का विकास होना बहुत जरूरी है।

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