- अनन्त कालसर्प योग
प्रथम लग्न स्थान में राहु तथा सप्तम स्थान में केतु हो तथा अन्य सात ग्रह राहु और केतु के मध्य हो। इस योग का प्रभाव जातक के व्यक्तित्व, शरीर, सिर, आत्मा दादी पर जीवन पर्यंत विशेष रहता है। 42वर्ष की आयु अथवा राहु की महादशा में विशेष प्रभावी होता है।
अशुभ प्रभाव :- शरीर रोग, कष्ट व मानसिक तनाव अधिक रहता है। जीवन में अधिक संघर्ष तथा वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की असंतुष्टि बना रहता है। जीवन पर्यंत पेट सम्बन्धी कष्ट बना रहता है। प्रायः पेट में बचपन व युवा होने तक कीड़े परेशान करते है बाद में कब्ज आदि शौच सम्बन्धी कष्ट प्राप्ति की सम्भवना रहती है। जब जन्म लग्न और जन्म राशि एक ही हो तो सपन में मृत आत्मा आदि भी दृष्टिगोचर होता रहता है।
शुभ प्रभाव :- यदि यह योग वृष, मिथुन सिंह राशि में बन रहा हो तो यह योग राजयोग कारक साबित होता है। यह योग जातक के विदेश गमन के कारण बनता है तथा जातक अपने गुप्त युक्ति द्वारा लाभ और उन्नति प्राप्त करता है।
- कुलिक कालसर्प योग
द्वितीये व आठवें भाव से निर्मित इस योग में यदि राहु अशुभ भाव राशि में हो तो जातक को कुटुम्ब एवम धन सम्बन्धी परेशानी का सामना करना पर सकता है। अत्यंत परिश्रम बाद निर्वह योग धन की प्राप्ति होती रहती है। गुप्त रोग से कष्ट प्राप्ति की सम्भवना बनी रहती है। अगर खान पान, अचार-व्यवहार नियंत्रण में न हो तो मुख सम्बन्धी रोग तथा गले व श्वास सम्बन्धी रोग भी परेशानी का कारण बन सकता है।
शुभ प्रभाव :- अचानक धन की प्राप्ति । परन्तु जातक धन के अपेक्षा यश-कीर्ति को अधिक मूल्यवान समझता है।
सामान्य उपाय :- अपने घर के वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) को साफ-सुथरा कर मिट्टी के बर्तन में जल भरकर रखे तथा प्रतिदिन जल को बदलते रहें। पुराने जल को घर के बाहर किसी चौराहे पर डाल दे।