ज्योतिष में कोई भी कुयोग-योग शुभ-अशुभ दोनों फल की रचना करती है। कालसर्प योग के मुख्य नायक राहु हम प्राणी को दुःखों के अग्नि में तपाकर कुंदन के भांति निखारने व परिष्कृत करने का कार्य करती है। हम प्राणी जब किसी दुःख से व्याकुल हो जाते है तब हमें भगवान का सच्चा ध्यान आता है और हम प्रभु की शक्ति का स्मरण करने लग जाते है।
कुंडली में निर्मित कालसर्प योग पितृ दोष व सर्प शाप को संकेत करता है। सावन और भद्रमास तथा प्रत्येक मास की दोनों पंचमी तिथि सर्प शाप से मुक्तिहेतु सबसे उत्तम मास व तिथि है तथा अश्वनी मास का कृष्ण पक्ष और प्रत्येक मास की अमावश तिथि पितृ दोष से निवृत होने का उत्त माना जाता है।
कालसर्प निवृति बहुत सोच-समझकर पूर्ण कुंडली अध्य्यन बाद तथा प्राप्त समस्या का मुख्य कारण साबित होने के उपरांत ही करे अन्यथा आप कालसर्प योग से प्राप्त शुभ फल प्राप्ति से वंचित रह सकते है।