आम के आम गुठलियों के दाम, मतलब आम भी खाइए और गुठली बेच दीजिए। चलिए आपको एक ऐसे फसल के बारे मेें बताने जा रहे हैं जिससे न केवल आप फसल ले लीजिए बल्कि उसके पेड़ को हरे चारे में भी इस्तेमाल कर लीजिए। तो यह निश्चित रूप से दोहरे फायदे की खेती है। जिससे आप मालामाल हो जाएंगे।
दरअसल बंगलूरू कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने मक्के की एक ऐसी किस्म तैयार की है जिससे आपको मक्के का बंपर उत्पादन तो मिलता ही बल्कि उसके पेड़ को आप हरे चारे के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं। ये चारा पशुओं के लिए सबसे अच्छे और पोषण से भरपूर होते हैं।
आइए जानते हैं मक्के की इन किस्मों के बारे में जानते हैं। मक्के की ये दो नई किस्में एमएएच 14-138 (MAH 14-138)और एमएएच 15-84 (MAH 15-84) को विकसित करने वाले कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि ये किस्में मूल लाइन्स से बनाई गई है, जो अच्छा उत्पादन देती ही हैं, साथ ही कटाई के बाद भी खेतों में हरी भरी रहेंगी । इनका चारा पशुओं के लिए फायदेमंद साबित होगा। इस तरह ये किस्में दोहरे उद्देश्य को पूरा करेंगी ।
मक्के की इस किस्म की फसल अवधि 115 से 120 दिन की होती है, जिससे 40 से 42 क्विंटल तक मक्के का उत्पादन ले सकते हैं। मक्का की एमएएच 14.138 किस्म की फल अवधि 120 से 135 दिनों की है। जिससे प्रति एकड़ में 35 से 38 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं ।
आमतौर पर फसलों के अवशेष को सूखे चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, सूखे मक्के की डंठल भी इसी काम आती है, लेकिन नई किस्मों में कुछ खास है। इसके अवशेषों को खाने के बाद पचाना भी आसान होगा, अभी तक किसान धान और रागी जैसी फसलों का भूसा खा रहे थे, लेकिन अब मक्का भी इसमें जुड़ने जा रहा है।
पिछले दो दशकों में मक्के की खेती का दायरा 6 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 10 मिलियन हेक्टेयर पहुंच गया है, मक्के के उत्पादन में भी 12 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। पहले भारत से मक्के की 20 मिलियन टन पैदावार मिलती थी, जो अब 32 मिलियन टन हो गई है ।