देहरादून- इंजीनियरिंग डे पर विशेष: इंजीनियरिंग की अद्भुत मिसाल है यह नैनीताल में बना राजभवन और तटबंध

1 0

देहरादून । ब्रिटिश शासनकाल में नैनीताल में बना राजभवन हो या फिर भीमताल झील से पानी निकासी के लिए बनाया गया तटबंध, दोनों ही इंजीनियरिंग को अद्भुत मिसाल हैं। दोनों का निर्माण हुए सौ साल से अधिक समय बीत चुका है लेकिन इन सालों में ऐसा कोई निर्माण नजर नहीं आया जो इंजीनियरिंग की बेमिसाल उपलब्धियां बयां करता हो।

नैनीताल में मौजूद गौथिक वास्तुकला पर आधारित राजभवन देश के सर्वश्रेष्ठ राजभवनों में शुमार है। इसकी नींव 27 अप्रैल 1897 को रखी गई थी। मार्च 1900 में यह बनकर तैयार हुआ था। ब्रिटिश शासकों की पसंदीदा गौधिक शैली में निर्मित इस भवन का आकार अंग्रेजी के ई शब्द जैसा है। बड़ी-बड़ी गुंबदनुमा आकृतिया, तीखी ढलान वाली छतें और चौडी घुमावदार सीढ़ियां इस शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं।

मुंबई के विक्टोरिया टर्मिनस (वीटी) अब छत्रपति शिवाजी टर्मिनल की रूपरेखा बनाने वाले वास्तुकार फ्रेडरिक विलियम स्टीवन ने ही इस राजभवन का डिजाइन तैयार किया था। इस भवन के निर्माण में नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस के गवर्नर सर एंटोनी पैट्रिक मेक्डोनाल्ड और लोनिवि के अधिशासी अभियंता एफओ ऑएस्टेल की भी विशेष भूमिका रही। इसके निर्माण के बाद मैकडोनाल्ड ही इस राजभवन रहने वाले पहले लेफ्टिनेंट गवर्नर बने। वह 1900 से 1901 तक इसी राजभवन में रहे। 220 एकड़ क्षेत्र में फैले राजभवन में 113 कमरे हैं।

वहीं, 147 साल पुराने भीमताल झील के तटबंध का डिजाइन बनाने वाला कोई अंग्रेज वास्तुकार नहीं था बल्कि नैनीताल जिले के ही बल्यूटी गांव के जमींदार पदमाद बल्यूटिया थे। बल्यूटिया पूर्व सीएम स्व. एनडी तिवारी के परनाना थे। कई बार डैम का डिजाइन बनाकर थक चुके तत्कालीन अंग्रेज अधिकारियों ने पदमादत्त बल्यूटिया के बनाए डिजाइन के आधार पर ही डैम के तटबंध का निर्माण गोलाकार रूप में कराया था।

वर्ष 1880 में अंग्रेजों ने भीमताल में झील के तटबंध के लिए कई बार डिजाइन बनाए लेकिन इन डिजाइनों के आधार पर बनाए गए तटबंधों की दीवार झोल के पानी के दबाव से टूट जाती थीं। पदमादत्त बल्यूटिया को जब इसका चला तो उन्होंने अंग्रेज अधिकारियों से तटबंध की दीवार को गोलाकार स्वरूप देने के लिए कहा, लेकिन अंग्रेजों ने उनकी बात को तवज्जो नहीं दी। तब पदमादत्त बल्यूटिया तत्कालीन कमिश्नर रैमजे के पास गए और उन्होंने तटबंध की दीवार को गोलाकार बनाने का सुझाव दिया।

इसके बाद रैमजे ने अंग्रेज अधिकारियों के साथ बैठक की और बल्यूटिया के सुझाव के अनुरूप ही तटबंध का निर्माण कराने के लिए कहा। जैसे-जैसे काम होता गया भीमताल का तटबंध अपना स्वरूप लेता गया। महत्वपूर्ण बात यह रही कि अल्यूटिया के डिजाइन के आधार

पर बनाए गए तटबंध की दीवार एक बार भी क्षतिग्रस्त नहीं हुई। उनकी इस उपलब्धि पर नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन इंडिया ने वर्ष 2005 में बल्यूटिया को मरणोपरांत थर्ड नेशनल ग्रासरूट्स टेक्नोलॉजिकल इनोवेशंस

एंड ट्रेडिशनल नॉलेज अवार्ड से सम्मानित किया। यह सम्मान चौथी पीढ़ी के उनके प्रपौत्र नवीन चंद्र बल्यूटिया ने ग्रहण किया था।

इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है बनबसा में बना शारदा बैराज

नैनीताल। चंपावत जिले में करीब 93 वर्ष पूर्व बनबसा में बनाया गया शारदा बैराज (बनबसा बैराज) अभियांत्रिकी का नायाब नमूना है। अंग्रेज हुक्मरानों ने यूपी की 22 लाख एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई के लिए यह बैराज बनवाया था। इस बैराज के निर्माण में उस वक्त की अत्याधुनिक तकनीक को अपनाया गया था, जो आज भी अभियांत्रिकी के छात्रों के लिए नई तकनीक का नमूना और मार्गदर्शक भी है।

इस बैराज की खासियत इसका सिल्ट इजेक्टर और फिश लैडर, हैं। बैराज निर्माण में इस बैराज को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। वर्ष 1928 में 10 वर्षों परिश्रम से बनकर तैयार हुए बैराज को अंग्रेजों ने सिंचाई के लिए बनवाया था लेकिन आज यह बैराज भारत नेपाल के बीच 20 कर रहा है। बनबसा बैराज से ही नेपाल के कंचनपुर जिला मुख्यालय के महेंद्रनगर को आवाजाही की जाती है।

रायबरेली (करीब 550 किमी) तक यूपी की 22 लाख एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई के लिए शारदा नहर के जरिये पानी पहुंचाया जाता है। नहर की फुल
क्षमता 11500 क्यूसेक है। शारदा नहर से हो लोहियाहेड पावर हाउस की 13-13 मेगावाट क्षमता की तीन टरबाइनें घुमाने के लिए पानी दिया जाता है। नेपाल को भी उसकी जरूरत का पानी नेपाल चैनल से दिया जाता है।

शारदा बैराज की खास बातें

  1. बैराज की लंबाई 598 मीटर है।
  2. बैराज संचालन के लिए 34 गेट बनाए गए हैं।
  3. बैराज से निकली नहर की लंबाई बनबसा से रायबरेली तक 550 किमी है। 4. बैराज की जलघनत्व सहन क्षमता छह लाख क्यूसेक हैं। इस बैराज ने 18 जून 2013 को सर्वाधिक 5.44 लाख क्यूसेक पानी क्षमता
    है।
  4. शारदा नहर के संचालन के लिए 16 गेट बनाए गए हैं, जो मैनुअल, हाइड्रो तकनीक से भी खोले और बंद किए जाते हैं।
  5. निर्माण के समय अत्याधुनिक तकनीक से किया गया फिशलंडर और सिल्ट इजेक्टर का निर्माण 7. शारदा नहर की फुललोड क्षमता है 11500 क्यूसेक
  6. बैराज निर्माण में 10 वर्ष का समय लगा।
  7. बैराज के निर्माण में तब साढ़े नौ करोड़ रुपये से अधिक लागत आई थी। 10. वैराज निर्माण में 25 हजार मजदूरों का श्रम लगा। श्रीमारी, हादसे, डाकुओं से मुठभेड़ आदि में करीब एक हजार लोगों की जानें भी गई।

11 दिसंबर 1928 को राष्ट्र को समर्पित किया गया था बैराज

बैराज को 11 दिसंबर 1928 को तत्कालीन यूपी संयुक्त प्रांत के गवर्नर सर मैलकम हेली ने राष्ट्र को समर्पित किया था। बताया जाता है कि उस समय बैराज निर्माण में लगे मजदूरों के अलावा अभियंता, और प्रशासन के करीब 25 हजार लोगों के बीच बैराज राष्ट्र को समर्पित किया गया था।

चैराज बनने में लगे थे 10 वर्ष

1956-57 में मद्रास इंजीनियरिंग कोर के लेफ्टिनेंट एंडरसन ने नहर निकालने को बनबसा फुटहिल (जहाँ से पहाड़ शुरू होते हैं) को उपयुक्त पाया। उन्होंने बैराज निर्माण का सर्वे शुरू किया लेकिन 1857 के विद्रोह में उनके सभी अभिलेख नष्ट हो गए। उनको एकमात्र बची डायरी के आधार पर वर्ष 1867 में कैप्टन फारवेस ने सर्वे कार्य आगे बढ़ाया। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सर बनाई डायरले ने बैराज की डिजाइनिंग की। वर्ष 1918 में बैराज निर्माण शुरू हुआ जो 10 वर्षों बाद 1928 में संपन्न हुआ।

सुरक्षा उत्तराखंड की अधिकार यूपी का

यूपी के अधिकार वाली इस राष्ट्रीय संपत्ति को सुरक्षा देने का काम उत्तराखंड पुलिस के जिम्मे है। सीओ भविनाश वर्मा ने बताया कि बैराज को सुरक्षा राज्य पुलिस के हाथों हैं, जिसके एवज में यूपी सिंचाई विभाग से कोई आर्थिक या अन्य मदद नहीं मिलती है।

advertisement at ghamasaana